युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत हैं मिसाइल मैन
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युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत हैं मिसाइल मैन।
डॉ. कलाम को उनकी सादगी, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, और देश के युवाओं को प्रेरित करने के लिए याद किया जाता है।
वे राष्ट्रपति बनने वाले पहले वैज्ञानिक और पहले अविवाहित भारतीय नागरिक थे उनका पूरी जीवन प्रेरणास्रोत है।
डॉ कलाम भारत के 11 वें राष्ट्रपति चुने गए
राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के रूप में नामांकित किए जाने का सभी ने स्वागत किया। 18 जुलाई, 2002 को संपन्न हुए चुनाव में डॉ. कलाम नब्बे प्रतिशत मतों के भारी बहुमत से भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति चुने गए। उन्हें 25 जुलाई 2002 को संसद भवन के अशोक हॉल में राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई। उनका कार्यकाल 25 जुलाई 2007 को समाप्त हुआ।
अपने अंतिम दिनों तक भी डॉ. कलाम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलांग, भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद तथा भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौर में आगंतुक प्रोफेसर बने हुए थे। साथ ही भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान तिरूवंतपुरम् में कुलाधिपति तथा अन्ना विश्वविद्यालय चेन्नई में एयरो इंजीनियरिंग के प्रध्यापक के पद पर भी नियुक्त थे।
कलाम के 79 वें जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया गया था। भारत सरकार द्वारा उन्हें 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण का सम्मान प्रदान किया गया जो उनके द्वारा इसरो और डी आर डी ओ में कार्यों के दौरान वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिये तथा भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य हेतु प्रदान किया गया था| 1997 में कलाम साहब को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया जो उनके वैज्ञानिक अनुसंधानों और भारत में तकनीकी के विकास में अभूतपूर्व योगदान हेतु दिया गया था |
1998 के पोखरण परमाणु परीक्षणों में डॉ. कलाम की मुख्य विशेषता महत्वपूर्ण भूमिका ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया था ।
वर्ष 2005 में स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने डॉक्टर कलाम के स्विट्ज़रलैंड आगमन के उपलक्ष्य में 26 मई को विज्ञान दिवस घोषित किया| नेशनल स्पेस सोशायटी ने वर्ष 2013 में उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान सम्बंधित परियोजनाओं के कुशल संचलन और प्रबंधन के लिये वॉन ब्राउन अवार्ड से पुरस्कृत किया।
डॉ कलाम का निधन
27 जुलाई 2015 की शाम अब्दुल कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में ‘रहने योग्य ग्रह’ पर एक व्याख्यान दे रहे थे जब उन्हें जोरदार कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) हुआ और ये बेहोश हो कर गिर पड़े। लगभग 6:30 बजे गंभीर हालत में इन्हें बेथानी अस्पताल में आईसीयू में ले जाया गया और दो घंटे के बाद इनकी मृत्यु की पुष्टि कर दी गई।
उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकें बहुत लोकप्रिय रही हैं। वे अपनी किताबों की रॉयल्टी का अधिकांश हिस्सा स्वयंसेवी संस्थाओं को मदद में दे देते हैं। मदर टेरेसा द्वारा स्थापित ‘सिस्टर्स आफ चैरिटी’ उनमें से एक है। विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं। इनमें से कुछ पुरस्कारों के साथ नकद राशियां भी थीं। वह इन पुरस्कार राशियों को परोपकार के कार्यों के लिए अलग रखते हैं। जब-जब देश में प्राकृतिक आपदाएँ आई हैं, तब-तब डॉ. कलाम की मानवीयता एवं करुणा निखरकर सामने आई है। वह अन्य मनुष्यों के कष्ट तथा पीड़ा के विचार मात्र से दुःखी हो जाते हैं। वह प्रभावित लोगों को राहत पहुचाँने के लिए डी.आर.डी.ओ. के नियंत्रण में मौजूद सभी संसाधनों को एकत्रित करते। जब वे रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन में कार्यरत थे तो उन्होंने हर राष्ट्रीय आपदा में विभाग की ओर से बढ़ चढ़कर राहत कोष में मदद की।
डॉ. कलाम ने “विंग्स आफ फायर”, “इग्नाइटेड माइंड्स”, जैसी कई सुप्रसिद्ध पुस्तकें लिखी हैं। डॉ. कलाम को अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले हैं जिनमें शामिल हैं- इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स का नेशनल डिजाइन अवार्ड; एरोनॉटिकल सोसाइटी आफ इंडिया का डॉ. बिरेन रॉय स्पेस अवार्ड; एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी आफ इंडिया का आर्यभट्ट पुरस्कार, विज्ञान के लिए जी.एम. मोदी पुरस्कार, राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार
डॉ कलाम का बचपन
डॉ. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम् कस्बे में एक मध्यमवर्गीय तमिल परिवार में हुआ था। इनके पिता जैनुलाबदीन की कोई बहुत अच्छी औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी, और न ही वे कोई बहुत धनी व्यक्ति थे। इसके बावजूद वे बुद्धिमान थे और उनमें उदारता की सच्ची भावना थी। इनकी माँ, आशियम्मा उनके जीवन की आदर्श थीं। वे लोग अपने पुश्तैनी घर में रहते थे, जो कि उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य बना था तथा रामेश्वरम् के प्रसिद्ध शिव मंदिर से महज दस मिनट की दूरी पर स्थित मस्जिदवाली गली में था। इनके पिताजी एक स्थानीय ठेकेदार के साथ मिलकर लकड़ी की नौकाएँ बनाने का काम करते थे जो हिन्दू तीर्थयात्रियों को रामेश्वरम् से धनुषकोटि ले जाती थीं। डॉ. कलाम को अपने पिताजी से विरासत के रूप में ईमानदारी और आत्मानुशासन, तथा माँ से ईश्वर में विश्वास और करुणा का भाव मिला।