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October 4, 2025

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यूपी के सीएम योगी की मंशा को दरकिनार करते हुए भू माफियाओं से मिलकर आवास विकास परिषद का खतरनाक खेल

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यूपी के सीएम योगी की मंशा को दरकिनार करते हुए भू माफियाओं से मिलकर आवास विकास परिषद का खतरनाक खेल: बहु फसली कृषि भूमि का बेड़ा गर्क करने की तैयारी मुज़फ्फरनगर। 26 जुलाई प्राप्त समाचार के अनुसार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की किसान हितेषी मंशा को उत्तर किनार करते हुए उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद द्वारा कुख्यात भू माफियाओं से साज करके जहां एक और सैकड़ो किसानों को भूमि धर से भूमिहीन करने का खतरनाक खेल खेला जा रहा है वहीं दूसरी ओर बहु फसली कृषि भूमि का बेड़ा गर्क करने की तैयारी उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद द्वारा की जा रही है परंतु उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद के इस खेल को या इस मंसूबे को क्षेत्रीय किसान किसी भी हालत में पूरा नहीं होने देंगे किसानों का कहना है कि चाहे जान चली जाए परंतु 1 इंच भी कृषि भूमि उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद को नहीं दी जाएगी पहले भी इस प्रकार के मंसूबे उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद ने बनाकर कुख्यात भू माफिया को लाभ पहुंचाया है जो जग जाहिर है क्षेत्रीय किसानों का कहना है कि वही खेल उत्तर प्रदेश विकास परिषद पूर्व की भांति खेल रही है जिस क्षेत्र किसान बर्दाश्त नहीं करेंगे बड़ी तादाद में आपत्तियां भी दी गई है मिली जानकारी के अनुसार इस पूरे प्रकरण की जानकारी मुख्यमंत्री शिकायत पोर्टल और उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री को पूर्व में ही भेजी जा चुकी है मिली जानकारी के अनुसार

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 जुलाई को लखनऊ में आयोजित 36वें उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान स्थापना दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में कहा था कि, “गांवों से पलायन नहीं होना चाहिए, बल्कि कृषि को ही खुशहाली का माध्यम बनाया जाए।“ इस वक्तव्य से प्रदेश के किसानों में नई आशा जगी, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे उलट नज़र आ रही है। जनपद मुज़फ्फरनगर की तहसील सदर के ग्राम शेरनगर, बिलासपुर और धधेडा के किसानों ने मुख्यमंत्री के इस वक्तव्य को अपनी भूमि की वर्तमान स्थिति से जोड़ते हुए गंभीर सवाल उठाए हैं।

इन तीनों गांवों की लगभग 4200 बीघा बहुफसली कृषि भूमि को एक आवासीय योजना के अंतर्गत अधिग्रहण की प्रक्रिया में शामिल किया गया है, जिसमें अकेले ग्राम शेरनगर की लगभग 3700 बीघा अति उपजाऊ और सिंचित भूमि है। यह भूमि लंबे समय से गन्ना, गेहूं, धान, दलहन, बागवानी, सब्ज़ियों और पशुपालन जैसे ग्रामीण जीवन के मूल स्तंभों की आधारशिला रही है।

25 जुलाई को ग्राम शेरनगर में आशु मुखिया के यहाँ आयोजित एक संयुक्त बैठक में तीनों गांवों के सैकड़ों किसानों ने भाग लिया और प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण के खिलाफ एकजुट होकर विरोध जताया। बैठक में तीनों गांवों के प्रधान भी मौजूद रहे। बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि किसी भी परिस्थिति में, किसी भी प्रकार के मुआवज़े या सरकारी दबाव के बावजूद किसी भी किसान की एक इंच भूमि भी नहीं दी जाएगी।

बैठक में आगे की रणनीति पर चर्चा हुई। इसमें मुख्यमंत्री से सीधे संपर्क करने, लखनऊ में ज्ञापन सौंपने, न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने, शांतिपूर्ण धरने और कानूनी विकल्पों पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया गया। इसके साथ ही किसानों ने विभाग द्वारा की जा रही तेज़ और एकतरफा कार्यवाही पर भी गहरी आपत्ति जताई। बिना किसी खुली सुनवाई, जन-सहमति या ग्रामसभा की वैधानिक अनुमति के अचानक सर्वेक्षण और नोटिस भेजना एक प्रकार की मनोवैज्ञानिक दबाव नीति के अंतर्गत किया गया कृत्य प्रतीत होता है। किसानों ने मुख्यमंत्री से इस संपूर्ण प्रक्रिया की उच्च स्तरीय जांच कराने की भी मांग की है।

ग्रामवासियों ने यह भी स्पष्ट किया कि यह भूमि केवल कृषि भूमि नहीं है, बल्कि शेरनगर, बिलासपुर और धंधेरा जैसे गांव 500 वर्षों से अधिक पुराने ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान वाले गांव हैं। यहां की परंपराएं, धार्मिक स्थल, तालाब, प्राचीन वृक्ष, मंदिर, दरगाह और समुदाय की जीवनशैली इस भूमि से जुड़ी हुई है। अधिग्रहण के नाम पर न सिर्फ ज़मीन छीनी जा रही है, बल्कि एक जीवंत ऐतिहासिक अस्तित्व को भी नष्ट किया जा रहा है।

किसानों ने यह भी चेतावनी दी कि यदि यह अधिग्रहण हुआ, तो तीनों गांवों में विस्थापन और पलायन एक निश्चित सत्य बन जाएगा। युवा रोज़गार के लिए शहरों की ओर निकल जाएंगे, बुजुर्ग व महिलाएं पीड़ा में रहेंगी और गांव केवल कागज़ों में शेष रह जाएंगे।

बैठक में किसानों ने प्रशासन और नीति-निर्माताओं से एक बहुत ही अहम और तथ्यात्मक सवाल भी उठाया। उन्होंने बताया कि शेरनगर और बिलासपुर क्षेत्र में पहले से ही दर्जनों निजी हाउसिंग कॉलोनियां विकसित की जा चुकी हैं, जिनमें हजारों प्लॉट और फ्लैट आज भी खाली पड़े हैं। इनमें द्वारिका सिटी, ओम पैराडाइज़, गोकुल सिटी, न्यू गोकुल सिटी, सुरेंद्र नगर, वृंदावन सिटी, वेदांता, पारस एंक्लेव, ड्रीम सिटी, अनसल टाउन, अनेक कॉलोनीयाँ आदि प्रमुख हैं। इन कॉलोनियों में आधारभूत सुविधाएं होते हुए भी अधिकांश निर्माण अधूरे हैं या लोग निवास नहीं कर रहे।

किसानों ने सवाल उठाया कि जब इन इलाकों में पहले से हज़ारों भूखंड व भवन उपलब्ध हैं, तो फिर बार-बार शेरनगर क्षेत्र को ही क्यों लक्ष्य बनाया जा रहा है? उन्होंने यह भी इंगित किया कि मुज़फ्फरनगर के पश्चिमी क्षेत्र में, विशेषकर शामली रोड, बुढ़ाना रोड, चरथावल रोड, रूड़की रोड और वहलना रोड जैसे क्षेत्रों में न तो कोई बड़ी हाउसिंग योजना चलाई गई है, न ही कोई संगठित आवासीय विस्तार हुआ है, जबकि इन क्षेत्रों में विकास की वास्तविक आवश्यकता है और यह सभी राष्ट्रीय राजमार्गों से भी सीधे जुड़े हुए हैं।

किसानों ने कहा कि यह देखकर यह संदेह और भी प्रबल होता है कि कहीं यह पूरा अधिग्रहण केवल कुछ चुनिंदा निजी हितों को लाभ पहुंचाने का माध्यम तो नहीं बन रहा? उन्होंने प्रशासन और सरकार से यह मांग की कि यदि वास्तव में जनहित और नियोजन उद्देश्य है, तो विकास का भार केवल एक ही गांव या क्षेत्र पर क्यों डाला जा रहा है?

किसानों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की। कि वे अपने कक्तव्य की भावना के अनुरूप इस प्रस्तावित योजना की समीक्षा करें और गांवों को पलायन, विस्थापन और विनाश से बचाएं। किसान यह मानते हैं कि यदि सरकार की मंशा साफ है तो इस भूमि अधिग्रहण को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाएगा और गांवों को बहुफसली क्षेत्र घोषित करते हुए संरक्षित किया जाएगा।

पंचायत में मुख्य रूप मनोज गुर्जर, फोजू, प्रमोद राठी, सीता सैनी, मनीष पाल, राधेश्याम शर्मा, विनोद शर्मा, यूसूफ चौधरी अब्दुल सत्तार, सुकेश एडवोकेट, मेहरदीन, अनिरूद्ध गुंर्जर, सुरेन्द्र गुर्जर, चौधरी अमजद अली, प्रमोद कुमार, रविन्द्र सैनी, अंकित पाल, दाऊद एडवोकेट, राजेन्द्र कुमार, सागर सैनी, नाजिम अली, तौसीब चौधरी, प्रधानपति इकराम अंसारी, प्रधानपति बिलास पुर, अबरार अली, कुनाल राठी, अभिषेक शर्मा, अमित पाल, रोहन सैनी आदि सैकड़ो किसानो ने भाग लिया।

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