त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय श्रीमती कांति देवी जैन व्याख्यानमाला सम्पन
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त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय श्रीमती कांति देवी जैन व्याख्यानमाला सम्पन
देश विदेश के वक्ताओं ने ‘ वसुधैव कुटुम्बकम ‘ को माना अशांत विश्व को शांत करने वाला मूलमंत्र
नई दिल्ली। भारत अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र गुरुग्राम, चाणक्य वार्ता, हंसराज कालेज के संयुक्त तत्वावधान में ऑन लाइन आयोजित छठी व्याख्यानमाला में ‘अशांत विश्व में वसुधैव कुटुम्बकम की प्रासंगिकता ‘ विषय पर हुई व्याख्यानमाला सम्पन्न हो गयी। जिसमें देश- विदेश के वक्ताओं ने ‘ वसुधैव कुटुम्बकम ‘ को अशांत विश्व को शांत करने वाला मूलमंत्र माना और चाणक्य वार्ता की इस गोष्ठी को वर्तमान समय की जरूरत बताया।
पहले दिन नागालैंड के उच्च शिक्षा एवं पर्यटन मंत्री तेमजीन इमना अलोंग ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि आज का इंसान जानवरों से भी बदतर हो गया है। जानवर भी इतना नही लड़ता जितना इंसान लड़ रहा है। भारत- पाक, इजरायल, गाजा, यूक्रेन, रूस सहित अनेक देश युद्ध झेल रहे है या झेल चुके हैं। भगवान भी हमको देखकर परेशान होता होगा। जिस धरती को भगवान ने इंसान के लिए बनाया, इंसान उसी धरती के लिए लड़ रहा है। वसुधैव कुटुम्बकम केवल दो शब्द नही है। यह भगवान का संदेश है, परमपिता परमेश्वर का विचार है कि सब मिलजुलकर रहे, एक दूसरे से प्यार करें, विश्व मे शांति हो, गरीब का कल्याण हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने महामारी के समय वसुधैव कुटुम्बकम की मिसाल कायम करते हुए विश्व के अनेक देशों की मदद की और इंसानों को बचाया।
थाईलेंड से शिखा रस्तोगी ने कहा कि भारत अपने लिए नही बल्कि विश्व के लिए सौचता है। आयरलैंड में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा ने कहा कि पूरे ब्रह्मांड में शांति का मार्ग भारत के ऋषि मुनियों ने ही प्रशस्त किया है। आज फिर उसकी जरूरत है। उज्बेकिस्तान से प्रो उल्फत मुखीबोवा ने कहा कि वसुधेव कुटुम्बकम का ज्ञान वेदों से लेकर अन्य इतिहास में भी मिलता है। रोते बच्चे को देखकर सब उसे चुप कराते हैं, कोई धर्म नही पूछता यही वसुधैव कुटुम्बकम है। सभी मिलजुलकर रहे, शांति रहे। प्रो मौना कौशिक ने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम के भारत के संदेश ने भारतीय व यूरोप दर्शन को जोड़कर रखा है। स्वागत भाषण में प्रो रमा ने कहा कि आज शांति, विश्वास पीछे छूट रहे हैं। मानवता को संकट में डाला जा रहा है। मोदी जी का एक अर्थ, एक परिवार, एक भविष्य ही वसुधेव कुटुम्बकम का मूल मंत्र है।
पहले दिन की अध्यक्षता विद्या भारती दीमापुर के संगठन मंत्री पंकज सिन्हा ने की।
दूसरे दिन भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि आज वसुधैव कुटुम्बकम का भारत का संदेश विश्व के कोने कोने में गए भारतवंशियों ने बखूबी पहुंचाया है। जिससे शांति बनी रहे। लेकिन शांति को खतरा कमजोरों से नही ताकतवरों से है। आज विश्व में ताकतवर देश ही अशांत हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रूस को लगातार समझा रहे हैं कि यह समय युद्ध का नही है। वे पूरी कोशिश कर रहे हैं कि युद्ध बंद हो और सभी देशों में भाईचारा तथा शांति बनी रहे। लेकिन मामला दबदबा बनाये रखने का है। यही भावना अमेरिका की भी है। उन्होंने कहा कि वैसे तो शांति व अशांति हमेशा से साथ रही है और रहेंगी। लेकिन प्रयास नही छोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत युगों-युगों से वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देता रहा है लेकिन आज के परमाणु युग में भारत को वसुधैव कुटुम्बकम की चुनौती को स्वीकार करके ही विश्व शांति के मार्ग पर आगे बढ़ना होगा। साथ ही अपनी रक्षा भी करनी होगी। इसके लिए डिप्लोमेसी बनानी होगी।
मुख्य अतिथि से पूर्व अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ के कुलपति प्रो डॉ अजय तनेजा ने कहा कि आज अधिकांश देशों में अशांति है। यह वर्चस्व की लड़ाई है जो अन्य देशों को भी चिंतित करती हैं। ताकतवर देश विश्व बाजार को खरीदने के लिए लड़ रहे हैं। ऐसे में जरूरत है वसुधैव कुटुम्बकम की। अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्याम परांडे ने कहा कि भारत वंशी जहाँ जहाँ भी जाते हैं वहाँ के लोगों को अपना बना लेते हैं और अपनी योग्यता से अपनी जगह बनाकर पूरे विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश दे रहे हैं।
जापान से डॉ रमा पूर्णिमा शर्मा ने कहा कि आज के अशांत देशों को एक सूत्र में बांधने की जरूरत है। वसुधैव कुटुम्बकम ही ऐसा कर सकता है। क्वींस यूनिवर्सिटी बेलफ़ास्ट से प्रो डॉ एम सतीश कुमार ने कहा कि भारत की संस्कृति की पहचान वर्षो पुरानी है। अटल जी चाहते थे कि हर देश के अपने पड़ोसी देशों से मधुर संबंध हो और शान्ति कायम रहे। साउथ कोरिया से आशुतोष मिश्रा ने कहा कि भारत हर देश के साथ खड़ा है। मोदी जी विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश दे रहे हैं। आर्मेनिया से रिप्समने नेर्सिस्यान ने भारत में स्थित ताजमहल की याद ताजा की और कहा कि प्यार, मोहब्बत के साथ रहने का संदेश भारत पहले से ही देता आया है। जनता हमेशा शांति चाहती है लेकिन राजनीति संघर्ष की ओर ले जाती है। नेताओं की असली ताकत जोड़ने में नही तोड़ने में है। यूक्रेन से प्रो यूरी बोटवींकिंन ने अपने ओजस्वी वक्तव्य में कहा कि अलग-अलग राज्यों व देशों में राजनीति के कारण मतभेद होते हैं और वे एक दूसरे के शत्रु बन जाते हैं। मानव का शत्रु उसके अंदर बैठा है। दूसरे दिन की अध्यक्षता ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) एन.सी. पंडा ने की।
व्याख्यानमाला के तीसरे दिन नागालैंड के पूर्व मुख्य सचिव जे आलम ने कहा कि इस गोष्ठी का विषय ज्वलंत समस्या पर विचार करने के लिए है। यह आज की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत की सभ्यता हज़ारों साल पुरानी है। वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत व महाकाव्यों में भी वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश चिन्हित है। संतो व महापुरुषों ने भी पूरी मानव जाति की एकता का संदेश दिया है। लेकिन आज कुछ संकीर्ण सौच व अउदारवादी लोग जमीन व अपना प्रभाव कायम रखने के लिए दुनिया को अशांत कर रहे हैं। युद्ध का वातावरण है, एशिया में प्रतिबद्धता है, पड़ोसियों से तनाव व अनिश्चितता की स्थिति है। पूरा विश्व अशांति से जूझ रहा है। दूरियां बढ़ती जा रही है। जलवायु परिवर्तन, आपदाओं से नुकसान हो रहा है। महामारियों का संकट है। सामाजिक व सांस्कृतिक से भारतीयों के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। इन सबका समाधान वसुधैव कुटुम्बकम की इस धारणा से ही संभव है कि एक दूसरे का सहयोग करें, करुणा व साझा जिम्मेदारी निभाये। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से शांति व सहयोग का संदेश देता रहा है। कोरोना काल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनियां के 100 से अधिक देशों को वैक्सीन देकर महामारी से निजात दिलाई। श्री मोदी का संदेश है कि ‘वन अर्थ, वन फेमिली वन फ्यूचर’। वहीं भारत ने योग को भी आधुनिक नीति का संवाहक बनाया। बांग्लादेश, नेपाल व श्रीलंका की मदद की। श्री आलम ने कहा कि चुनौती व आदर्श और व्यवहार में बहुत बड़ा अंतर होता है। इसे कमतर किया जा सकता है। प्रबंधन व शिक्षा में कोई भी पॉलिसी बनाने के लिए विजन चाहिए। विजन के बाद ही अगले सभी कदम उठाए जा सकते हैं। मैं विश्व शांति के लिए ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ को विजन के रूप में मानता हूं। उसके बाद दुनियां, देश, राज्य स्तर पर प्रशासनिक यूनिट पॉलिसी बन सकती हैं।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि इस बार की गोष्ठी का विषय ‘ अशांत विश्व में वसुधैव कुटुम्बकम की प्रासंगिकता ‘ भारत की संस्कृति की थीम है। दुनियां में शांति व युद्ध रुकवाने में भारत की भूमिका क्या हो सकती है, ये गोष्ठी उस पर प्रकाश डालेगी।
साउथ सूडान में भारत के राजदूत विष्णु शर्मा ने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम का विषय समयानुकूल है। भारत ने हमेशा से विश्व शांति के लिए कार्य किया है। जी 20 में विश्व को एक परिवार बनाने का प्रयास किया। महामारी में बिना भेदभाव वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श पर सैकड़ों देशों की मदद उन्हें एकता के सूत्र में बांधने के लिए कार्य किया। यूके हिंदी समिति, लंदन ब्रिटेन के संस्थापक डॉ पदमेश गुप्ता ने कहा कि भारत में संयुक्त परिवार वसुधैव कुटुम्बकम की ऐसी मिशाल है, जो अन्यत्र नही मिलती। वसुधैव कुटुम्बकम का मकसद सफेद कागज ही नहीं बल्कि जीवन का मार्ग है। कुलपति प्रो डॉ नवीन चंद लोहनी ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार मानकर, जाति, धर्म को छोड़कर, सीमाओं से बाहर निकलकर शांति व सम्रद्धि का मार्ग सभी को मिलकर करना होगा। तभी वसुधैव कुटुम्बकम की प्रासंगिकता सिद्ध होगी।
रूसी- हिंदी विद्वान, मास्को की डॉ सरोज शर्मा ने कहा कि भारत के वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श संदेश से प्रेरित होकर ही रूस में जन मैत्री विश्वविद्यालय की स्थापना 1960 में की गई थी जिसमें पूरी दुनिया का संगम दिखाई देता है। यहा सभी छात्र वसुधैव कुटुम्बकम का प्रकाश बिखेरते हैं।
जर्मनी से मेकेनिकल इंजीनियर निखिल भूमकर ने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम वैश्विक परिवार की भावना को मजबूत कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं जर्मनी के उनके समकक्ष ने आपसी रिश्ता बनाया है। वसुधैव कुटुम्बकम से अशांत दुनियां में शांति संभव है, बशर्ते इसको हम सब मिलकर जीवन सूत्र बनाये।
नेपाल से अधिवक्ता हेमंत झा ने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम एक भाव है, एक सौच है, भारत का प्राचीन शब्द है, वर्तमान परिपेक्ष्य में इसकी महत्वपूर्ण प्रासंगिकता है। लेकिन आज इसका पालन अनेक देश नही कर रहे हैं, तभी अशांति है।
महाराजा सुहेलदेव विश्वविद्यालय, आजमगढ़ के कुलपति प्रो डॉ संजीव कुमार ने कहा कि आज यूक्रेन, रूस, इजरायल, गाजा आदि एक दर्जन से भी अधिक देशों में अशांति है। भारत ऐसा इकलौता देश है जिसने हज़ारों साल पहले वसुधैव कुटुम्बकम की बात की थी। लेकिन कालखंड ने ऐसा नही होने दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अब इसे दोबारा उठाया है। पूरे विश्व में कुटुंब की भावना जागृत की है। जी 20 की थीम भी वही थी। एक पृथ्वी, एक परिवार की तरह से सबको जीने का संदेश दिया। वैश्विक स्तर पर अशांति को दूर करने के लिए वसुधैव कुटुम्बकम ही अकाट्य मंत्र है। यही संस्कृति, भाषा, धर्म व जाति को बचाता है। यही सभी का सम्मान सिखाता है।
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो डॉ मुकेश पांडेय ने कहा कि भारत ने प्राचीन काल से ही पूरे विश्व को एक परिवार माना है। उसी के अनुरूप कार्य व व्यवहार किया है। इंसान कही का भी हो वह इंसान है, इसका संदेश वसुधैव कुटुम्बकम से मिलता है। आज जब दुनियां में अशांति है, जलवायु परिवर्तन है, महामारी हैं, आपदाएं हैं, तब अशोक सम्राट एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अहिंसा का संदेश और विश्व को जोड़ने का मूलमंत्र वसुधैव कुटुम्बकम ही सही और सच्चा समाधान कर सकता है। तीनों दिन प्रस्तावना एवं विषय पर्वतन श्रीमती कांति देवी जैन स्मृति न्यास के अध्यक्ष डॉ अमित जैन ने प्रस्तुति की। तीसरे दिन अतिथियों का स्वागत शुभदा वराडकर एवं धन्यवाद ज्ञापन बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी के प्रो डॉ अवनीश कुमार ने और अध्यक्षीय भाषण लक्ष्मीनारायण भाला द्वारा दिया गया। तीनों दिन का संचालन अभिषेक त्रिपाठी, आयरलैंड द्वारा किया गया। इस महत्वपूर्ण व्याख्यानमाला में ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट; बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी; उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी; महाराजा सुहेल देव राज्य विश्वविद्यालय, आजमगढ़; ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ; एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद्, नई दिल्ली; नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली ने सहयोगी संस्था के रूप में भाग लिया।